जिंदगी का बस एक सच्चा उसूल है,
जो तुम बातों के वापस तुम्हें भी हो।
वहीं मिलेगा फिर चाहे वह चीज चाहे
दौलत हो चाहे इज्जत हो चाहे प्यार हो,
चाहे नफरत हो या फिर चाहे धोखा हो।
मनुष्य कितना भी अच्छा- बुरा कर्म करके
अपने पास इकट्ठा कर ले लेकिन वक्त आने
पर वह सब उसे यहीं छोड़ कर जाना पड़ेगा,
फिर ना कोई मायूसी और ना कोई बहाना चलेगा।
ये वो दुनिया है साहब जहां वक्त खामखा बदनाम है,
जबकि सच्चाई है कि इस दुनिया में बदलते तो इंसान हैं।
यहां बोलने को तो कोई अपने मुंह से कुछ भी बोल जाता है,
जब वक्त आता है बोलने का तो ऐसे लगते हैं जैसे बेजुबान हैं।
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